दोस्तों बहुत से लोगों को यही पता है कि कत्था केवल पान में ही इस्तेमाल होता है। लेकिन कत्था के फायदे (Kattha Ke Fayde) व उपयोग बहुत कम लोगों को ही पता है।
सम्पूर्ण भारतवर्ष में कोई शुभ कार्य हो, खुशी का मौका हो या पूजा पाठ का। उसमे पान का उपयोग जरूर होता है। पान खाना भी भारत में एक आम शौक है। लेकिन जब बात पान खाने की आती है तो बिना Kattha का पान अधूरा होता है।
जब भी पान वाला पान लगाता है तो सबसे पहले कत्था जरूर लगाता है। कत्थे के कई लाभकारी गुण फायदे (Kattha Ke Fayde) है। आज के इस लेख में हम कत्थे से जुड़ी बहुत सी जानकारियों को विस्तार से जानने वाले है, तो चलिए शुरू करते है।
कत्था क्या है (What is Kattha?)
Kattha एक आयुर्वेदिक औषधि है। जिसे खैर (Khair) या खदिर के नाम से जाना जाता है। अनेको लाभकारी गुण होने के कारण इसका इस्तेमाल बहुत व्यापक स्तर पर होता है। खैर के पेड़ की लकड़ी से कत्था को निकाला जाता है।
कत्था का प्रकार (Types of Kattha)
यह दो प्रकार का होता है। लाल कत्था तथा सफेद कत्था। लाल कत्था का उपयोग पान में होता है। जबकि सफेद कत्था का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है।
कत्था का पहचान व स्वरूप (Identification and Description of Kattha)
खदिर एक मध्यम कद का कंटकीय (कांटेदार) वृक्ष है। यह बबूल की प्रजाति का वृक्ष है। इसके टहनियां पतली होती है जिसपे जोड़े में कांटे लगे होते है।
इसकी पत्तिया संयुक्त तथा 30-40 के जोड़े में होती है। कत्था के पुष्प श्वेत (सफेद) या हल्के पिले रंग के मंजरीयों में होते है। खैर की छाल आधे से पौने इंच मोटी होती है जो बाहर से काले भूरे रंग होती है। जबकि अंदर से यह भूरे रंग की होती है।
कत्था का प्रयोज्य अंग (Usable part of Kattha)
खैर का मुख्यतः खदिर सार तथा त्वक इस्तेमाल किया जाता है।
कत्था का स्वाद (Tasts of Kattha)
आयुर्वेद के अनुसार खैर, ठंडा, कड़वा, तीखा और कसैला होता है।
कत्था के अन्य नाम (Name of Kattha)
- Famous Name : कत्था (Kattha)
- Botanical Name: Syn: Acacia Chundra (Roxb) Willd. Acacia Catechu Willd Mimosaceae (Leguminosae)
- Hindi Name: कत्था (Kattha), दन्त धावन (Dant-Dhavan), गायत्रिन् (Gayatrin), खैर (Khair), खयर (Khayar), मदन (Madan), पथिद्रुम (Pathi-Drum), पयोर (Payor), प्रियसख (Priya-Sakh)
- Sanskrit Name: गायत्रिन् (Gayatrin), खदिर या खादिर (Khadira), पथिद्रुम (Pathi-Drum), पयोर (Payor), प्रियसख (Priya-Sakh)
- English Name: Black Catechu, Black Cutch, Cashoo, Catechu, Cutch Tree, Wadalee Gum
- Assamese Name: Kher
- Bengali Name: Khayer
- Gujarati Name: Kher
- Kannada Name: Kaachu, Kadira, Kadu, Kaggali
- Konkani Name: खैर Khair
- Malayalam Name: Karintaali
- Marathi Name: खैर Khair, खयर Khayar, यज्ञवृक्ष Yajnavrksa
- Nepalese Name: खयर् Khayar
- Pali Name: खदिरो Khadiro
- Prakrit Name: खइरं या खाइरं Khaiiram
- Tamil Name: Cenkarungali, Kacu-K-Katti, Karai
- Telugu Name: Khadiramu. Kaviricandra, Nallacandra
- Urdu Name: Khair
कत्था का गुण, दोष और प्रभाव (Properties, defects and effects of Kattha)
इसमें सूजनरोधी (Anti-Inflammatory) गुण होता है, जो सूजन को कम करता है। कत्थे में Wound Healing गुण होता है। यह घाव को भरने का काम करता है। इसमें Astringent गुण पाए जाते है जो रक्त स्राव को रोकता है।
Astringent एक तरल प्रदार्थ होता है जिसको त्वचा पर लगाने से त्वचा में Oil कम होता है। कत्था में Cooling Properties होती है। इससे शरीर को ठंडक मिलता है। कत्थे में Digestive गुण होता है। इससे पाचन ठीक होता है। Kattha रक्त शोधक (Bloodpurifier) का काम करता है।
कत्था का रासयनिक संगठन (Kattha Chemical Constituents)
इसके अंदर की लकड़ी में कैटेचिन (Catechin) एवं कैटेचुटैनिक अम्ल (Catechutannicacid) होता है। इस कैटेचुटैनिक अम्ल में 50 % टैनिन (Tannin) पदार्थ पाया जाता है।
कत्था कैसे बनाया जाता है?
आपके मन में भी यह बात जरूर आयी होगी कि कत्था कैसे बनाया जाता होगा ? चलिए हम आपको बताते है कि कत्था बनाने का तरीका क्या है ? सबसे पहले खैर के तने को जब कुछ मोटा हो जाये तब इसे काट लिया जाता है। काटकर इसके छोटे-छोटे टुकडे़ कर इसके अंदर की लकड़ी को निकाल ली जाती है। अब लगभग 10 किलोग्राम लकड़ी के टुकड़े को 25-30 लीटर गर्म पानी में लगभग 3 घंटे तक पकाया जाता है।
गाढा होने पर इसे कपड़े की मदद से छानकर इसे चौकोर बर्तन में रखा जाता है। कत्था के क्रिस्टलाइजेशन के लिए इसे कम से कम 2 दिनों तक छाँव में रखा जाता है। जब पूर्ण क्रिस्टलाइजेशन हो जाता है और यह सुख जाता है। तब इसे चौकोर टुकड़ों में काट लिया जाता है। जिसे कत्था कहते है। जब दुबारा कुछ देर तक ऐसे इसे गर्म किया जाता है तो यह चिपचिपा हो जाता है। दुबारा सूखने पर इसे कच्छ कहा जाता है। एक अनुमान के अनुसार 100 किलोग्राम कटी हुए लकड़ी से लगभग 14 किलोग्राम कच्छ और 5 किलोग्राम कत्था (Kattha) प्राप्त होता है।
कत्था के फायदे व उपचार (Kattha ke fayde aur Upchar)
Kattha के फायदे और उपचार की विधियाँ इस प्रकार हैं –
चर्मरोग में (Charm Rog me Kattha Ke Fayde)
कत्थे का पंचांग का क्वाथ बनाकर प्रतिदिन सुबह-साम दो दो चम्मच सेवन करने से चर्मरोग में काफी लाभ होता है। इसके पंचांग को जल में उबाल कर स्नान करने से भी काफी फायदा होता है।
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मलेरिया बुखार में (Maleriya bukhaar me kattha ka upyog)
अगर किसी को मलेरिया बुखार हो जाये तो कत्था उसके लिए एक बेहतर औषधि है। कत्था की गोली को दिन में दो बार चूसने से मलेरिया में कभी लाभ होता है।
स्वर भेद (कण्ठदोष) में
तिल के तेल में कत्था मिलाकर इसमें कपड़े का छोटा सा टुकड़ा भिगो दे। और उस कपड़े को मुँह में रखें ऐसा करने से गला खुल जाता है।
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दस्त में (Diarrhea me Kattha ka upyog)
बार बार दस्त की समस्या होने पर या पेट की खराबी होने पर कत्थे का इस्तेमाल करना काफी फायदेमंद होता है। कत्थे को पानी में उबालकर लेने या पकाकर लेने से दस्त में लाभ मिलती है। कत्था पाचन से संबंधी समस्याओं में भी कत्था काफी फायदेमंद होता है।
व्रण में
कत्थे को जल में उबाल कर, जल से व्रण को साफ करने से काफी लाभ होता है। साथ ही इस जल में 2-3 ग्राम त्रिफला चूर्ण मिलाकर प्रातः सायं पिने से भी काफी फायदा होता है।
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दांत संबंधी समस्या में (Dental disease me Kattha ka upyog)
किसी भी प्रकार की दांत से संबंधी समस्या में कत्थे के चूर्ण को सरसों के तेल के साथ मिलाकर मंजन करने से बहुत लाभ होता है।
श्वित्र रोग में
इसमें बराबर मात्रा में खैर की छाल और आँवला को मिलाकर अच्छी तरह से उबाल ले। फिर प्रातः एवं सायंकाल एक एक चम्मच आँवला का चूर्ण मिलाकर सेवन करे। श्वित्र रोग में काफी लाभ होता है।
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गले की खराश में (Sore throat me Kattha ka upyog)
किसी को गले में खराश हो जाये तो कत्थे का चूर्ण मुख में रखकर चूसने से गले का खराश ठीक हो जाता है। साथ ही गला बैठना और मुँह के छाले होने की समस्या भी खत्म हो जाती है।
रक्त पित्त में (Blood bile me Kattha ke fayde)
अगर किस के मुख से, नासिका, गुदा, या मूत्र मार्ग द्वारा रक्त स्राव होता है। तो एक चम्मच खैर के पुष्प के चूर्ण में एक चम्मच मधु मिलाकर। प्रातः सायं सेवन करने से काफी फायदा होता है।
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बवासीर में (Piles me Kattha ka upyog)
इसमें सफेद कत्थे को बड़ी सुपारी और नीला थोथा के साथ भून ले। फिर तांबे के बर्तन में मक्खन के साथ मिला कर संबंधित स्थान पर लगाने से बवासीर में बहुत फायदामिलता है।
अतिसार में (Atisar me Kattha ka upyog)
250 ml छाछ में 5 ग्राम कत्था का चूर्ण मिलाकर पिने से अतिसार में बहुत लाभ होता है।
प्रदर रोग में (Leucorrhoea me Kattha ka upyog)
कत्था प्रदर रोग में भी काफी फायदेमंद होता है। कत्थे और बांस के पत्तों को बराबर मात्रा में लेकर कल्क बना लें। फिर इसमें कल्क केग्राम हिसाब से शहद की मात्रा लेकर पेस्ट बनाकर खाएं। इससे प्रदर रोग में लाभ मिलता है।
भगंदर में (Fistula me Kattha ka upyog)
खदिर की छाल तथा त्रिफला का काढ़ा बनाकर, इसमें भैंस का घी और विडंग का चूर्ण मिलाकर पिने से भगंदर में काफी लाभ मिलता है।
कान की समस्या (Ear problem me Kattha ka use)
अगर कान में दर्द हो या कान बहने की समस्या हो। कत्थे को पीसकर गुनगुने पानी में मिलाकर कान में डालने से काफी फायदा होता है।
मसूड़ों का रक्तस्राव में (Bleeding gums me
Kattha ke fayde)
कत्थे का कुल्ला करने से मसूड़ों के रक्तस्राव में काफी लाभ होता है।
मसूड़ों से खून आना बंद हो जाता है।
दमा रोग में (Asthma me Kattha ka upyog)
कत्था सांस संबंधी समस्याओं के लिए बहुत अच्छी औषधि है। कत्थे को हल्दी और शहद के साथ मिलाकर दिन में दो बार एक एक चम्मच लेने से दमा और सांस संबंधी समस्याओंकाफी लाभ होता है।
रक्तस्राव में (Bleeding me Kattha ka upyog)
चोट लगने पर रक्तस्राव में या कोई घाव हो जाए, तो उसमें कत्थे का पाउडर डालने से रक्त का स्राव बंद जाता है। और घाव भी जल्दी भर जाता है।
वातरक्त में (Anemia me Kattha ka use)
समभाग में खदिर के मूल का चूर्ण और आँवलें के रस में, घी और मधु मिलाकर प्रातः सायं पिने से वातरक्त में काफी लाभ होता है।
खाँसी में (Cough me Kattha ka upyog)
लगातार खांसी आने पर,बराबर मात्रा में कत्था, हल्दी और मिश्री को आपस में मिलाकर गोलियां बना ले। दिन में दो से तीन बार इन गोलियों को चूसने से खांसी दूर हो जाती है।
सूखी खाँसी में (Dry cough me Kattha ka upyog)
एक कप दही के पानी में दो ग्राम खदिर सार डालकर सुबह और साम पिने से सूखी खाँसी में काफी लाभ होता है। खदिर के अंदर की छाल का चार भाग, बहेड़ा की छाल दो भाग, लौंग एक भाग, इन सबका चूर्ण बना ले। फिर दिन में तीन बार एक एक ग्राम मधु के साथ चाटने से सूखी खाँसी में बहुत आराम मिलता है।
कत्था के सेवन का तरीका (How to Use Kattha?)
इसका इस्तेमाल सिमित मात्रा में करना चाहिए। क्योकि जायदा मात्रा में सेवन नुकसान दायक होता है। अत्यधिक मात्रा में सेवन आपको नपुंसक तक बना सकती है।
कत्था के सेवन की मात्रा (How Much to Consume Kattha?)
अगर आप त्वक का चूर्ण इस्तेमाल कर रहे है तो 1-3 ग्राम तक करना चाहिए। खैर का क्वाथ इस्तेमाल कर रहे है तो 50ml -100ml तक करना चाहिए।
वही खदिरसार का इस्तेमाल कर रहे है तो 1/2 से 1 ग्राम तक कर सकते है।
कत्था कहा पाया जाता है (Where is Kattha Found)
इसका पेड़ समस्त भारत में से पाया जाता है। खासकर उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के खैर शहर मे ये अधिक मात्रा मे पाया जाता है।
इसके आलावा यह चीन, पाकिस्तान, नेपाल, श्री लंका, भूटान, म्यांमार में भी पाया जाता है।
विशेष- खैर के हीर की लकड़ी घुनती नहीं है। इसी वजह से खेती के औजार बनाने में इसका इस्तेमाल ज्यादा होता है।
कत्था से नुकसान
जहाँ कत्था के अनेको स्वस्थ्य लाभ है। वही इसका अधिक सेवन से कुछ नुकसान भी है जैसे –
पथरी का खतरा : ऐसा माना जाता है कि कत्थे का ज्यादा सेवन से पथरी होने की संभावना काफी बढ़ जाती है।
किडनी स्टोन : कत्थे का अत्यधिक सेवन किडनी स्टोन का कारण बन सकता है। अतः इसका सेवन ज्यादा नहीं करना चाहिए।
नपुंसकता का कारण : कत्थे का अत्यधिक सेवन पुरुषों में नपुंसकता का कारण बन सकता है।
अतः जो लोग पान में कत्था ज्यादा खाते है उन्हें इसका ध्यान रखना चाहिए।