आज का लेख “Bhairava Mudra” के बारे में है। योग मुद्राओं में भैरव मुद्रा एक बहुत ही शक्तिशाली मुद्रा है। इस मुद्रा के नियमित अभ्यास आपको दीर्घकालिन लाभ देता है। भैरव मुद्रा का हमारे शरीर और मस्तिष्क पर काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। तो चलिए भैरव मुद्रा के बारे में विस्तार से जानते है।
भैरव मुद्रा – Bhairava Mudra
भगवान शंकर का ही एक रूप भैरव है। यह भगवान शंकर का उग्र रूप है। भैरव रूप में भगवान शंकर प्रलय करते है। हमारे दोनों हाथ इड़ा और पिंगला नाड़ियों के परिचायक है, और साथ ही व्यक्ति की सर्वोच्य चेतना के साथ एकात्मकता का भी बोध कराते है। भगवान शंकर के भैरव रूप पे इसका नाम भैरव मुद्रा पड़ा है।
भैरव मुद्रा करने की विधि – Bhairava Mudra in Hindi
इस मुद्रा का अभ्यास बहुत ही सरल व् आसान है। भैरव मुद्रा को कहीं भी और कभी भी किया जा सकता है। लेकिन जब वातावरण में प्राण वायु अधिक हो तब इसे करने से जयादा लाभ मिलता है।
सबसे पहले ध्यान के किसी आसन जैसे- सुखासन, पद्मासन या वज्रासन में आराम से बैठ जाये।
अपने सिर और मेरुदण्ड Spinal cord को सीधा रखें।
दोनों हाथों को गोद में रखें।
आँखों को बन्द कर गहरी श्वसन करे और पुरे शरीर को शिथिल करें।
अब दाहिने हाथ को बायें हाथ के ऊपर इस प्रकार रखें कि दोनों हथेलियाँ ऊपर की ओर रहें।
दाहिने हाथ को शीर्ष पर रखने से भैरव मुद्रा का निर्माण होता है।
इसी अभ्यास में जब आप अपने बाएं हाथ को शीर्ष पर रखते हैं, तो इसे भैरवी मुद्रा का निर्माण होता है।
भैरव मुद्रा के लाभ – Bhairava Mudra Benefits in Hindi
यह मुद्रा आपके दिमाग के हिस्सों या गोलार्द्ध को संतुलन लाने के लिए जाना जाता है।.
भैरव मुद्रा दिमाग के बाएं और दाएं हिस्से के बीच संतुलन बनाए रखता है.
यह मुद्रा व्यक्ति में सर्वोच्य चेतना का विकास करता है।
भैरव मुद्रा का नियमित अभ्यास करने एकात्मकता का बोध होता है।
Bhairav Mudra (भैरव मुद्रा) कब करनी चाहिए –
इसका अभ्यास आप कभी भी कर सकते है। भैरव मुद्रा (Bhairava Mudra) का उपयोग प्राण मुद्रा में किया जाता है।
प्राणायाम और ध्यान के साथ भैरव मुद्रा का अभ्यास करने से अत्यधिक लाभ प्राप्त होता है।
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