Bhujangini mudra कैसे करते है? | भुजंगिनी मुद्रा के लाभ

दोस्तों आज का लेख भुजंगिनी मुद्रा (Bhujangini mudra) के बारे में है। इस लेख में आप जान पायेंगे कि भुजंगिनी मुद्रा क्रिया योग की विधि एवं लाभ क्या है? तो चलिए शुरू करते है –

भुजंगिनी मुद्रा – Bhujangini mudra in hindi

इस मुद्रा का नाम भुजंगिनी मुद्रा इसलिए पड़ा है। कि इसमें श्वास लेते समय गर्दन और मुख की स्थिति फन को उठाये हुए भुजंग (सांप) तरह हो जाती है। ऐसी मान्यता है कि इसके नियमित अभ्यास से उदर से संबंधित सभी रोग दूर होते है। और दीर्घायु जीवन प्राप्त होता है।

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भुजंगिनी मुद्रा करने की विधि – Bhujangini mudra Steps in Hindi

  • सबसे पहले ध्यान के किसी आसन जैसे- सुखासन, पद्मासन या वज्रासन में आराम से बैठ जाये।
  • आँखों को बन्द कर गहरी श्वसन करे और पुरे शरीर को विशेषकर उदर को शिथिल करें।
  • अब अपने ठुड्डी (Chin) को थोड़ा सा आगे और ऊपर की ओर करें।
  • मुँह से वायु को अन्दर लेना शुरू करें।
  • वायु को अंदर लेते समय पानी पीने के समान घूँट घूँट की तरह वायु को पेट में पहुंचाने का प्रयास करें।
  • उदर (stomach) को जितना हो सके उतना अधिक से अधिक फैलायें।
  • जबतक आराम से आप वायु को उदर में रोक सकते है रोकें। फिर डकार लेते हुए उसे बाहर निकाल दें।
  • इस तरह भुजंगिनी मुद्रा (Bhujangini mudra) का एक चक्र हुआ। पुनः इसे दोहराए।

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भुजंगिनी मुद्रा करने कीअवधि – Duration

Bhujangini mudra को शुरुआत में 3 से 5 बार अभ्यास करना पर्याप्त होता है। यदि आप किसी विशेष रोगोपचार के लिए इसे कर रहे है। तो इसकी संख्या को बढ़ा सकते है।

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भुजंगिनी मुद्रा करने का क्रम – Sequence

वैसे तो भुजंगिनी मुद्रा (Bhujangini mudra) का अभ्यास कभी भी कर सकते है। लेकिन शंख प्रक्षालन की क्रिया के बाद भुजंगिनी मुद्रा करने से विशेष लाभ (Bhujangini Mudra Benefits) मिलता है।

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भुजंगिनी मुद्रा के लाभ – Bhujangini Mudra Benefits in Hindi

  • भुजंगिनी-मुद्रा भोजन-नलिकाओं (whole stomach) की दीवारों और पाचक रस का स्राव करने वाली ग्रंथियों को नया जीवन प्रदान करती है।
  • यह मुद्रा करने से अमाशय (stomach) पुष्ट होता है।
  • भुजंगिनी-मुद्रा निष्क्रिय उदर वायु का निष्कासन करती है।
  • यह मुद्रा उदर रोगो के निराकरण में सहायक है।
  • भुजंगिनी-मुद्रा को नियमित रूप से करने से पुराना से पुराना गैस की समस्या ठीक हो सकती है।
  • यह मुद्रा बुढ़ापा को दूर करने और यौवन को बढ़ाने वाली मुद्रा है।
  • भुजंगिनी-मुद्रा उदर रोग से संबंधित सभी विकारों में फायदेमंद है।

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