दोस्तों आज का लेख Nadi Shodhana Pranayama कैसे करते है के बारे में है. इस लेख में नाड़ी शोधन प्राणायाम को करने का सही तरीका, और उससे होने वाले लाभ और नुकासन के बारे में बताया गया है. Nadi Shodhana प्राणायाम को करते समय क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए, इसे किसे करना चाहिए और किसे नहीं। इन सभी बातो को विस्तार से बताने वाला हूँ. जो चलिए शुरू करते है.
नाड़ी शोधन प्राणायाम क्या है? – What is Nadi Shodhana Pranayama in hindi?
नाड़ी का अर्थ होता है मार्ग या जीवनी शक्ति का प्रवाह, शोधन का अर्थ होता है शुद्ध करना। इस प्रकार नाड़ीशोधन का अर्थ हुआ वह अभ्यास जिससे नाड़ियों का शुद्धिकरण हो। प्राणायाम, प्राण + आयाम दो शब्दों से मिलकर बना है. प्राण का अर्थ होता है जीवनी शक्ति और आयाम का अर्थ होता है नियमन। इस प्रकार प्रणायाम का अर्थ हुआ जीवनी शक्ति का नियमन। Nadi Shodhana प्राणायम से शरीर मस्तिक और भावनाएं नियंतित्र रहती है.
प्राणयाम के पूर्व नाड़ी शुद्धि आवश्यक होता है. नाड़ी शोधन क्रिया के अभ्यास से प्राण जाग्रत होते है. लेकिन प्राण की जाग्रति और प्राणों का स्वत्रंत प्रवाह तभी संभव है जब हमारे भीतर की सभी नाड़ियाँ अवरोध रहित बन जाये।
नाड़ी शोधन प्राणायाम में हाथ की स्थिति (नासाग्र मुद्रा) – Hand postion in Nadi Shodhana Pranayama (Nasagra Mudra)
इसको करते समय हाथ की स्थिति कुछ इस प्रकार रहनी चाहिए –
- दाहिने हाथ की उँगलियों तर्जनी और मध्यमा को भ्रू मध्य पर रखें।
- अब अंगूठा दाहिने नासिकाछिद्र के ऊपर और अनामिका ऊँगली बायें नासिकाछिद्र के ऊपर रखें।
- बारी बारी से नासिकाछिद्र को अंगूठा और अनामिका ऊँगली से दबाकर उनके श्वास प्रवाह को नियंत्रित करें।
- पहले एक नासिकाछिद्र को दबाकर दूसरे से श्वाश प्रवाहित करे, और उसके बाद दूसरे नासिकाछिद्र को दबाकर, पहले नासिकाछिद्र को खोलकर उसमे श्वास करें।
नाड़ी शोधन प्राणायाम प्रारम्भिक अभ्यास करने का तरीका – Preparatory practice of Nadi Shodhana Pranayama in hindi?
प्रारम्भिक अभ्यास या Nadi Shodhana प्राणायाम विधि 1 करने के दो चरण (Stage 1 & Stage 2) है. जो इस प्रकार से किये जाते है-
Satge 1:
- सिद्धासन, सिद्ध योनि आसन, पद्मासन, सुखासन या ध्यान के किसी भी आसन में आराम से बैठ जाइये।
- अब आँखों को बंद करे और पुरे शरीर को शिथिल करें। इसी अवस्था में यौगिक श्वसन करें।
- अब दाहिने हाथ को नासाग्र मुद्रा में रखें और बायें हाथ को घुटने पर ज्ञान या चिन मुद्रा में रख ले।
- दायी नासिकाछिद्र को बंद कर, बायीं नासिकाछिद्र से 5 बार श्वास को अंदर ले और बाहर छोड़े।
- फिर दायी नासिकाछिद्र को खोलकर कर, बायीं नासिकाछिद्र को बंद कर कुछ क्षण के लये श्वास प्रवाह को रोकें।
- अब दायी नासिकाछिद्र से 5 बार श्वास को अंदर ले और बाहर छोड़े।
- इसके बाद हाथ को निचे कर ले और दोनों नासिकाछिद्र से एक साथ 5 बार श्वास को अंदर ले और बाहर छोड़े।
- यह एक चक्र पूरा हुआ। शुरुआत में आप इसे 5 बार तक करें।
लगभग 15 दिनों तक प्रारम्भिक अभ्यास करने के बाद ही नाड़ीशोधन प्राणायाम की दूसरी विधि को करें।
Stage 2:
दूसरा चरण भी पहले चरण की तरह ही करना है। बस इसमें अब प्रत्येक श्वास की अवधि को नियंत्रित करना है।
- बाएँ, दाएँ और दोनों नासिकाछिद्र से साँस लेने और छोड़ने की लंबाई को गिनें।
- बिना किसी तनाव के गहरी श्वास लें। सांस भरते हुए मानसिक रूप से 1, ॐ , 2, ॐ , 3, ॐ, इस तरह की गिनती करे। जब तक कि श्वास आराम से पूणतः समाप्त न हो जाए।
- नासिकाछिद्र से साँस को छोड़ते समय भी मानसिक रूप से 1, ॐ , 2, ॐ , 3, ॐ, इस तरह की गिनती करे।
- साँस का अंदर लेना और बाहर छोड़ना बराबर होना चाहिए तथा नासिका से कोई आवाज नहीं आनी चाहिए।
- इस तरह 5 चक्रो तक इसका अभ्यास करे।
- जब गिनती बिना किसी जोर जबरजस्ती के 10 तक पहुंच जाए, तो ही दूसरी विधि का अभ्यास करना चाहिए।
नाड़ीशोधन प्राणायाम विधि 1 में क्या सावधानी बरतनी चाहिए?
- अगर कोई सर्दी, फ्लू या बुखार से पीड़ित है तो उसे नाड़ी शोधन का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
नाड़ीशोधन प्राणायाम विधि 1 के फायदे
- Nadi Shodhana प्राणायाम विधि 1 नासिकाछिद्र में श्वास के प्रति जागरूकता और संवेदनशीलता को बढ़ाती है।
- इससे छोटी-छोटी रुकावटें दूर होती हैं और दोनों नासिकाछिद्र में श्वास का प्रवाह अधिक संतुलित हो जाता है।
- बाएं नासिकाछिद्र से सांस लेने से मस्तिष्क का दायां गोलार्द्ध सक्रिय होता है। दाया नासिकाछिद्र से सांस लेने से बायां गोलार्द्ध सक्रिय होता है।
- दूसरे चरण में गहरी, धीमी और संतुलित श्वास का गहरा प्रभाव पड़ता है, यह ऊर्जा को शांत और संतुलित करता है।
दोनों नथुने साफ होने चाहिए और स्वतंत्र रूप से बहने चाहिए। नेति क्रिया के अभ्यास से बलगम की रुकावट को दूर किया जा सकता है।यदि नासिका छिद्र में श्वास का प्रवाह असमान है, तो सांस संतुलन तकनीक के रूप में पदाधिरासन का अभ्यास करके इसे संतुलित करना चाहिए। नाड़ी शोधन करने से पहले लोगों को उदर श्वसन करने आनी चाहिए।
नाड़ी शोधन प्राणायाम (एकांतर नासिका श्वसन) करने का तरीका
इस विधि में श्वास-प्रश्वास के समय को नियंत्रित किया जाता है। इस को करने के दो चरण (Stage 1 & Stage 2) है. जो इस प्रकार से किये जाते है-
Stage 1:
- इसमें 1:1 के अनुपात का उपयोग करते हुए, समान रूप से साँस लेना और छोड़ना शुरू करें।
- दाहिने नथुने को अंगूठे से बंद करें और बाएं नथुने से श्वास लें।
- साथ ही मानसिक रूप से 1, ॐ , 2, ॐ , 3, ॐ, इस तरह की गिनती करे। जब तक कि श्वास आराम से पूणतः समाप्त न हो जाए।
- श्वास को लेते और छोड़ते हुए कोई जबरजस्ती ना करे.
- अब बाएं नथुने को अनामिका से बंद करें और दायीं नासिका छिद्र से सांस छोड़ते हुए मानसिक रूप से 1, ॐ , 2, ॐ , 3, ॐ, इस तरह की गिनती करे। साँस लेने और छोड़ने का समय बराबर होना चाहिए।
- इसके बाद दायीं नासिका छिद्र से श्वास अंदर लें, और मानसिक रूप से 1, ॐ , 2, ॐ , 3, ॐ, इस तरह की समान गिनती करे।
- अंत में श्वास भरते हुए दायीं नासिका छिद्र को बंद करें और बायें नासिका छिद्र को खोलें। पहले की तरह मानसिक रूप से 1, ॐ , 2, ॐ , 3, ॐ गिनते हुए बाएं नथुने से सांस छोड़ें।
- यह एक चक्र हुआ। इस तरह 10 चक्र तक का अभ्यास कर सकते है.
इसको करते हुए एक सप्ताह के बाद, यदि कोई कठिनाई न हो, तो साँस ललेने और साँस छोड़ना की लंबाई एक गिनती बढ़ा दे। इस तरह से गिनती बढ़ाते रहें जब तक कि 10: 10 की गिनती न हो जाए।
गिनती बढ़ाने के चक्कर में किसी भी तरह से जबरदस्ती न करें। ना ही सांस की कमी की भरपाई के लिए या साँस को छोड़ते समय गिनती में तेज करनी चाहिए। अगर कोई परेशानी महसूस हो तो गिनती को कम कर दे.
Stage 2:
यह चरण भी Stage1 की भाँति करना है लेकिन श्वास का अनुपात बदल जाता है.
- Stage1 के 1:1 के अनुपात को अब 1:2 में बदलना है।
- प्रारंभ में श्वास की लंबाई को आधा कर दें। 5 तक गिनती करते हुए श्वास लें और 10 तक गिनती करते हुए श्वास को छोड़ें।
- दूसरी तरफ से इसी तरह 1:2 के अनुपात में दोहराएं। यह एक चक्र हुआ।
- इस तरह 5 से 10 राउंड का अभ्यास करें।
- धीरे धीरे साँस लेते हुए एक गिनती और साँस छोड़ने के लिए दो गिनती जोड़कर, 10:20 की गिनती तक साँस को बढ़ाते रहें।
जबतक इस विधि को पूरी आसानी से ना कर ले तबतक तीसरी विधि को ना करे।
नाड़ी शोधन प्राणायाम (एकांतर नासिका श्वसन) में क्या सावधानी बरतनी चाहिए?
- हृदय की समस्याओं वाले लोगों के लिए Stage 2 को करने की सलाह नहीं दी जाती है। क्योकि गिनती की संख्या को बढ़ाने से हृदय पर जोड़ पड़ता है.
नाड़ी शोधन प्राणायाम (एकांतर नासिका श्वसन) के फायदे
- इस विधि से सांस और मस्तिष्क गोलार्द्धों (Cerebral Hemispheres) को अधिक स्पष्ट संतुलन मिलता है।
- यह शांत प्रभाव डालता है और चिंता से राहत देता है.
- यह एकाग्रता में सुधार करता है और आज्ञा चक्र को उत्तेजित करता है।
- Stage 1 में 1: 1 का अनुपात मस्तिष्क और हृदय के लिए एक शांत लय स्थापित करता है.
- विशेष रूप से यह हृदय और तंत्रिका संबंधी विकारों वाले लोगों की सहायता करता है.
- यह तनाव को दूर करता है।
- जैसे-जैसे गिनती बढ़ती है, सांस धीमी हो जाती है। यह अनुपात अस्थमा, वातस्फीति और ब्रोंकाइटिस जैसी श्वसन समस्याओं वाले लोगों को लाभ देता है।
- Stage 2 में 1:2 का अनुपात गहरा विश्राम देता है।
- इसमें दिल की धड़कन और नाड़ी की गति धीमी हो जाती है।
- रक्तचाप कम हो जाता है.
नाड़ी शोधन प्राणायाम अंतर्कुम्भक के साथ – Nadi Shodhana Pranayama with antar kumbhaka
इसे पाँच चरणों में किया जाता है. इस विधि में अंतर्कुम्भक को जोड़ा जता है।
Stage 1:
- 1: 1: 1 के अनुपात का उपयोग करते हुए, पूरक रेचक और कुम्भक करे.
- दाहिने नासिकाछिद्र को बन्द करें और बायें नासिकाछिद्र से धीरे धीरे 5 की गिनती तक पूरक करें.
- पूरक करने के बाद दोनों नासिकाछिद्रों को बन्द कर लें और 5 की गिनती तक श्वास को फेफड़ो में रोके रखें।
- फेफड़ों में वायु को रोके रखने के लिए कण्ठद्वार को थोड़ा संकुचित या जालंधर बन्ध लगा सकते है.
- दाहिने नासिकाछिद्र को खोले और थोड़ी श्वास ले।
- फिर उसी नासिकाछिद्र से धीरे धीरे 5 की गिनती तक रेचक करें।
- रेचक की लम्बाई पूरक की लम्बाई के बराबर होनी चाहिए और रेचक सहज और नियंत्रित होना चाहिए।
- रेचक के तुरंत बाद बायें नासिकाछिद्र को बन्द रखते हुए, तुरंत 5 की गिनती तक दाहिने नाशिकाछिद्र से पूरक करें।
- अब दोनों नासिकाछिद्र को बन्द करके 5 की गिनती तक अंतर्कुम्भक करें।
- फिर बायें नासिकाछिद्र को खोलें, और थोड़ी से पूरक करे.
- अब बायें नासिकाछिद्र से 5 की गिनती तक रेचक करें।
यह एक चक्र पूरा हुआ। श्वास-प्रश्वासऔर गिनती के प्रति सजगता बनाये हुए 10 चक्रों तक का अभ्यास करें.
जैसे जैसे श्वास को लम्बे समय तक रोकने की क्षमता बढ़ती जाये, वैसे वैसे अनुपात में परिवर्तन करते जाना है. 5:5:5 के अनुपात में दक्षता प्राप्त होने के बाद इसे क्रमशः 7:7:7 फिर 10:10:10 तक बढ़ाना है।
इस पूरी प्रक्रिया में कोई जबरजस्ती नहीं करनी है. अगर कोई दिक्क्त लगे तो अनुपात को कम कर दे.
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Stage 2:
- 1:1:1 के अनुपात को पूर्ण करने के बाद अब अनुपात को 1:1:2 तक बढ़ाना है।
- 5 की गिनती तक श्वास लें, 5 की गिनती तक आंतरिक कुंभक करें और 10 की गिनती तक साँस छोड़ें।
- इसी तरह धीरे धीरे अनुपात को 5:5:10, 6:6:12, 7:7:14 और 10:10:20 तक पहुचायें।
Stage 3:
- तीसरे चरण में अनुपात को 1:2:2 में बदला जाता है।
- 5 की गिनती तक श्वास लें, 10 की गिनती तक आंतरिक कुंभक करें और 10 की गिनती तक साँस छोड़ें।
- इसी तरह धीरे धीरे अनुपात को 5:10:10, 6:12:12 और 10:20:20 तक पहुचायें।
पूरी प्रक्रिया में कोई जोर जबरजस्ती नहीं करनी है. अगर कोई दिक्क्त महसूस हो तो अनुपात को कम कर दे.
Stage 4:
- चौथे चरण में अनुपात को 1:3:2 में बदला जाता है.
- 5 की गिनती तक श्वास लें, 15 की गिनती तक आंतरिक कुंभक करें और 10 की गिनती तक साँस छोड़ें।
- इसी तरह धीरे धीरे अनुपात को 5:15:10, 6:18:12 और 10:30:20 तक पहुचायें।
पूरी प्रक्रिया में कोई जोर जबरजस्ती नहीं करनी है. अगर कोई दिक्क्त महसूस हो तो अनुपात को कम कर दे.
Stage 5:
- पाँचवें चरण में अनुपात को 1:4:2 में बदला जाता है.
- 5 की गिनती तक श्वास लें, 20 की गिनती तक आंतरिक कुंभक करें और 10 की गिनती तक साँस छोड़ें।
- इसी तरह धीरे धीरे अनुपात को 5:20:10, 6:24:12 और 10:40:20 तक पहुचायें।
पूरी प्रक्रिया में कोई जोर जबरजस्ती नहीं करनी है. अगर कोई दिक्क्त महसूस हो तो अनुपात को कम कर दे.
नाड़ी शोधन प्राणायाम अंतर्कुम्भक के साथ में क्या सावधानी बरतनी चाहिए?
- इसे गर्भावस्था के उत्तरार्ध में महिलाओं द्वारा नहीं करनी चाहिए है।
- जिन्हे हृदय की समस्या, उच्च रक्तचाप, वातस्फीति या किसी भी बड़े विकार हो उन्हें भी इसे नहीं करनी चाहिए।
- अस्थमा से ग्रसित रोगियों को भी इसे नहीं करना चाहिए।
नाड़ी शोधन प्राणायाम अंतर्कुम्भक के साथ के फायदे
- यह मस्तिष्क के विभिन्न केंद्रों को सक्रिय करता है।
- नाड़ी शोधन प्राणायाम अंतर्कुम्भक के साथ करने से प्राणों में सामंजस्य स्थापित होता है।
- योग ग्रंथों में अनुपात 1:4:2 की सर्वाधिक अनुशंसा की जाती है। यह गहन मनोवैज्ञानिक और प्राणिक प्रभाव देता है।
- इसे कुंडलिनी जागरण की तैयारी के रूप में भी उपयोग किया जाता है।
नाड़ी शोधन प्राणायाम अंतर्कुम्भक और बहिर्कुम्भक के साथ
इसे छः चरणों में किया जाता है. इसमें अंतर्कुम्भक के साथ बहिर्कुम्भक को जोड़ा जाता है.
Stage 1:
- 1:1:1:1 के अनुपात का उपयोग करते हुए, पूरक,अंतर्कुम्भक, रेचक और बहिर्कुम्भक करे.
- 5 की गिनती तक श्वास लें, 5 की गिनती तक आंतरिक कुंभक करें, 5 की गिनती तक रेचक करें और 5 की गिनती तक बहिर्कुम्भक करें।
- बायें नासिका छिद्र से 5 तक गिनते हुए श्वास अंदर लें.
- 5 तक गिनते हुए अन्तर कुम्भक में श्वास को रोके रखें।
- दाहिने नथुने से श्वास छोड़ें, 5 तक गिनें।
- साँस छोड़ने के बाद दोनों नासिका छिद्र बंद करें और श्वास को बाहर रोककर 5 तक गिनें।
- फेफड़ों से बाहर वायु को रोके रखने के लिए कण्ठद्वार को थोड़ा संकुचित या जालंधर बन्ध लगा सकते है.
- श्वास को लेने के ठीक पहले दाहिने नासिकाछिद्र से थोड़ी श्वास छोड़े, फिर धीरे धीरे श्वास को ले.
- दायें नासिका छिद्र से 5 तक गिनते हुए श्वास अंदर लें और अंतर्कुम्भक करें।
- बायें नासिकाछिद्र से श्वास छोड़े।
- फिर दोनों नासिका छिद्र बंद करें और श्वास को बाहर रोककर 5 तक गिनें।
यह एक चक्र हुआ. इसी तरह 5 चक्र तक अभ्यास करे. इसी तरह धीरे धीरे अनुपात को 5:5:5:5, 6:6:6:6 और 10:10:10:10 तक पहुचायें। पूरी प्रक्रिया में कोई जोर जबरजस्ती नहीं करनी है. अगर कोई दिक्क्त महसूस हो तो अनुपात को कम कर दे.
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Stage 2:
- 1:1:1:1 के अनुपात को पूर्ण करने के बाद अब अनुपात को 1:1:2:1 तक बढ़ाना है।
- 5 की गिनती तक श्वास लें, 5 की गिनती तक आंतरिक कुंभक करें, 10 की गिनती तक रेचक करें और 5 की गिनती तक बहिर्कुम्भक करें।
- इसी तरह धीरे धीरे अनुपात को 5:5:10:5, 6:6:12:6 और 10:10:20:10 तक पहुचायें।
पूरी प्रक्रिया में कोई जोर जबरजस्ती नहीं करनी है. अगर कोई दिक्क्त महसूस हो तो अनुपात को कम कर दे.
Satge 3:
- तीसरे चरण में अनुपात को 1:2:2:1 में बदलना है.
- 5 की गिनती तक श्वास लें, 10 की गिनती तक आंतरिक कुंभक करें, 10 की गिनती तक रेचक करें और 5 की गिनती तक बहिर्कुम्भक करें।
- इसी तरह धीरे धीरे अनुपात को 5:10:10:5, 6:12:12:6 और 10:20:20:10 तक पहुचायें।
पूरी प्रक्रिया में कोई जोर जबरजस्ती नहीं करनी है. अगर कोई दिक्क्त महसूस हो तो अनुपात को कम कर दे.
Satge 4:
- चौथे चरण में अनुपात को 1:2:2:2 में बदलना है.
- 5 की गिनती तक श्वास लें, 10 की गिनती तक आंतरिक कुंभक करें, 10 की गिनती तक रेचक करें और 10 की गिनती तक बहिर्कुम्भक करें।
- इसी तरह धीरे धीरे अनुपात को 5:10:10:10, 6:12:12:12 और 10:20:20:20 तक पहुचायें।
पूरी प्रक्रिया में कोई जोर जबरजस्ती नहीं करनी है. अगर कोई दिक्क्त महसूस हो तो अनुपात को कम कर दे.
Satge 5:
- पाँचवें चरण में अनुपात को 1:3:2:2 में बदलना है.
- 5 की गिनती तक श्वास लें, 15 की गिनती तक आंतरिक कुंभक करें, 10 की गिनती तक रेचक करें और 10 की गिनती तक बहिर्कुम्भक करें।
- इसी तरह धीरे धीरे अनुपात को 5:15:10:10, 6:18:12:12 और 10:30:20:20 तक पहुचायें।
पूरी प्रक्रिया में कोई जोर जबरजस्ती नहीं करनी है. अगर कोई दिक्क्त महसूस हो तो अनुपात को कम कर दे.
Satge 6:
- छठे चरण में अनुपात को 1:4:2:2 में बदलना है.
- 5 की गिनती तक श्वास लें, 20 की गिनती तक आंतरिक कुंभक करें, 10 की गिनती तक रेचक करें और 10 की गिनती तक बहिर्कुम्भक करें।
- इसी तरह धीरे धीरे अनुपात को 5:20:10:10, 6:24:12:12 और 10:40:20:20 तक पहुचायें।
पूरी प्रक्रिया में कोई जोर जबरजस्ती नहीं करनी है. अगर कोई दिक्क्त महसूस हो तो अनुपात को कम कर दे.
श्वसन- Breathing during Nadi Shodhana Pranayama
Nadi Shodhana प्राणायाम की सभी विधियों में श्वसन बिना आवाज के होना चाहिए. जिससे यह पता चलता है कि श्वसन में किसी प्रकार का कोई अवरोध नहीं है. साथ ही यही भी पता चलता है कि कोई जोर नहीं लगाया जा रहा है.
पुरे अभ्यास में श्वास प्रवाह निर्बाध और बिना किसी झटके के होना चाहिए। हमेशा वक्ष और मध्यपट की पेशियों का उपयोग करते हुए यौगिक श्वसन करना चाहिए।
सजगता – Awareness during Nadi Shodhana Pranayama
इसमें आपकी शारीरिक सजगता श्वास और गिनती पर होना चाहिए। आपकी मानसिक सजगता मन के चंचल प्रवृति के प्रति तथा अभ्यास और गिनती पर होना चाहिए। आपकी आध्यात्मिक सजगता आज्ञा चक्र पर होनी चाहिए।
Precautions in Nadi Shodhana Pranayama in Hindi
- कभी भी सांस को जोर से नहीं लगाना चाहिए।
- कभी भी मुंह से सांस न लें।
- इसका अभ्यास सक्षम शिक्षक के मार्गदर्शन में ही सावधानी पूर्वक करें।
- अगर बेचैनी महसूस हो या और कोई दिक्क्त महसूस हो तो तुरंत अभ्यास को कम या बन्द कर दे।
- नाड़ी शोधन में कभी भी जल्दबाजी या जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए।
Nadi Shodhana Pranayama Sequence in Hindi
- इसका अभ्यास आसनों और ताप बढ़ाने वाले या शतिलता प्रदान करने वाले प्राणायामों के बाद करना चाहिए।
- इसे भ्रामरी और उज्जायी प्राणायामों के पूर्व करना चाहिए. नाड़ीशोधन का सर्वोत्तम समय प्रातः 4 से 6 है.
- भोजन के तुरंत बाद इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए.
Duration of Nadi Shodhana Pranayama Sequence in Hindi
- नाड़ीशोधन प्राणायाम के किसी भी विधियों को 5 से 10 चक्र या 10 से 15 मिनट तक किया जा सकता है।
नाड़ीशोधन प्राणायाम के लाभ – Benefits of Nadi Shodhana Pranayama
- यह शरीर को पोषण करता है, नाड़ीशोधन से शरीर में आक्सीजन की मात्रा बढ़ जाता है.
- नाड़ीशोधन रक्त को शुद्ध करता है।
- इससे मस्तिष्क केन्द्र उत्तेजित होकर अपनी अधिकतम क्षमता से कार्य करने लगते है.
- Nadi Shodhana से शान्ति, विचारों में स्पष्ठता और एकागत्रा की प्राप्ति होती है.
- यह प्राणों में सामंजस्य लाकर प्राण शक्ति को बढ़ाता है.
- नाड़ीशोधन से तनाव एवं चिंता में कमी आती है.
- यह प्राणिक अवरोधों को दूर करऔर इड़ा एवं पिंगला नाड़ियों में सन्तुलन लाता है। जिससे सुषुम्ना नाड़ी का प्रवाह प्रारम्भ होता है.
- नाड़ीशोधन प्राणायाम आध्यात्मिक जागरण में सहायक है.