दोस्तों आज का लेख विपरीतकरणी मुद्रा (Vipareeta Karani Mudra) के बारे में है। इस लेख में आप जान पायेंगे कि विपरीतकरणी मुद्रा करने की विधि एवं लाभ क्या है? तो चलिए शुरू करते है –
विपरीतकरणी मुद्रा – Vipareeta Karani Mudra in Hindi
शिव संहिता में कहा गया है कि नियमित रूप से viparita karani mudra-विपरीतकरणी मुद्रा का एक प्रहर (लगभग तीन घण्टे ) अभ्यास जो करता है। वह काल को भी जीत लेता है। और प्रलय काल में भी उसे दुःख नहीं होता। विपरीतकरणी एक संस्कृत शब्द है। जिसमें विपरीत का अर्थ होता है उलटा। इस आसन में साधक का पैर ऊपर होता है। और सिर नीचे की तरफ। विपरीतकरणी मुद्रा शरीर के सातों चक्र को सक्रिय करने में अत्यंत मददगार है। और कुण्डलिनी जागरण में सहायक है।
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विपरीतकरणी मुद्रा करने की विधि – Vipareeta Karani Mudra Steps in Hindi
- इस मुद्रा को करने के लिए सबसे पहले विपरीतकरणी आसन में आ जायें।
- अब दोनों पैरों को एक साथ और सीधा रखते हुए उन्हें थोड़ा सा सिर की ओर झुकायें।
- पैर के पंजे आखों की सीध में होने चाहिए।
- आखों को बंद कर लें और पुरे शरीर को शिथिल करें।
- अब अपनी सजगता को नाभि के ठीक पीछे मेरुदंड में स्थित मणिपुर चक्र पर केंद्रित करें।
- यह विपरीतकरणी मुद्रा की प्रारम्भिक स्थिति है।
- अब उज्जायी प्राणायाम करते हुए धीरे धीरे गहरी श्वास लेना शुरू करे।
- श्वास को लेते समय यह अनुभव करे कि आपकी श्वास और चेतना मणिपुर चक्र से कण्ठ के पीछे मेरुदण्ड में स्थित विशुद्धि चक्र तक ऊपर चढ़ रही है।
- श्वास को छोड़ते समय अपनी सजगता को विशुद्धि चक्र पर केंद्रित रखें।
- रेचक के अन्त में अविलम्ब अपनी सजगता को विशुद्धि चक्र से मणिपुर चक्र पर वापस लायें।
- इसी तरह प्रकिया को दुहराते रहे।
- विपरीतकरणी मुद्रा में आरामपूर्वक जितनी देर रह सकते है। अभ्यास को करते रहे।
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विपरीतकरणी मुद्रा करने की अवधि – Duration
प्रारम्भ में इस मुद्रा का अभ्यास 5 से 7 चक्रों तक करें। जैसे जैसे अभ्यास में निपुणता होती जाए। चक्रों की संख्या को 21 तक ले जायें। अभ्यास के दौरान यदि सिर में तनाव बढ़ता है। तो अभ्यास को तुरंत बंद कर देना चाहिए।
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विपरीतकरणी मुद्रा करते समय सजगता – Awareness in Vipareeta Karani Mudra in Hindi
इस मुद्रा का अभ्यास करते समय आपकी सजगता श्वास की गति, मणिपुर चक्र और विशुद्धि चक्र पर होनी चाहिए।
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विपरीतकरणी मुद्रा करने का क्रम – Sequence
इस मुद्रा का अभ्यास ध्यान के पूर्व और दैनिक अभ्यास के अंत में करना चाहिए। विपरीतकरणी मुद्रा को करने के बाद पीछे की ओर मुड़ कर किये जाने वाले आसन, जैसे, उष्ट्रासन, मत्स्यासन या भुजंगासन को करना चाहिए।
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विपरीतकरणी मुद्रा अभ्यास का समय – Time of practice
यह मुद्रा को प्रतिदिन एक ही समय पर करना उत्तम होता है। खासकर प्रातःकाल के समय पर।
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विपरीतकरणी मुद्रा की सीमायें – Vipareeta Karani Mudra Contra-indications in Hindi
Vipareeta Karani Mudra सिर के बल किया जाने वाला अभ्यास है, इसलिए जबतक शरीर स्वस्थ न हो इसे नहीं करना चाहिए। साथ ही उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, बढ़ी हुई थायराइड ग्रंथि से पीड़ित व्यक्ति को भी इसे नहीं करना चाहिए। जिनके शरीर में विषाक्त पदार्थ अधिक हो, उन्हें भी विपरीतकरणी मुद्रा का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
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विपरीतकरणी मुद्रा के लाभ – Health Benefits of Vipareeta Karani Mudra in Hindi
- यह कम सक्रिय थायरॉइड को संतुलित करता है।
- विपरीतकरणी मुद्रा सर्दी जुकाम गले में सूजन और श्वसन सम्बन्धी रोगों को दूर करने में मदद करता है।
- यह कब्ज (Constipation) को दूर करता है।
- विपरीतकरणी मुद्रा भूख और पाचन शक्ति को बढ़ाता है।
- इस मुद्रा का नियमित अभ्यास वाहिका तंत्र और लचीलेपन को बढ़ाकर एथिरोकाठिन्य से बचाव करता है।
- विपरीतकरणी मुद्रा बवासीर, भ्रंश, अपस्फीत शिरा और हर्निया से छुटकारा दिलाता है।
- इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से मस्तिष्क, विशेषकर सेरेब्रल कार्टेक्स और पियूष एवं पीनियल ग्रंथियों में रक्त संचार में वृद्धि होती है।
- इससे प्रमस्तिष्कीय अपर्याप्तता और जराजन्य विक्षिप्तता दूर होती है।
- विपरीतकरणी मुद्रा से मानसिक सजगता में वृद्धि होती है।
- यह मुद्रा इड़ा और पिंगला नाड़ियों में प्राण के प्रवाह को संतुलित करता है।