Mula bandha कैसे करते है? Mool bandha के फायदे

आज का लेख “Mula bandha कैसे करते है?” के बारे में है. इसे किसे करना चाहिए और किसे नहीं। मूल बन्ध के लाभ और नुकासन क्या है? इसको करते समय क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए? इन सब के बारे में विस्तार से जानेगे. तो चलिए शुरू करते है।

मूल बन्ध क्या है? – What is Mula bandha in Hindi?

मूल का अर्थ है – जड़ तथा बांध का अर्थ होता है बँधना। यहॉँ मूल शब्द के अनेक तातपर्य हो सकते है , जैसे मूलाधार चक्र, कुंडलिनी का निवास स्थान, मेरुदंड का आधार या शरीर का धड़ अथवा पेरिनियम आदि. स्वाभाविक रूप से निम्नगामी अपानवायु को (गुदा के) आकुंचन के द्वारा बलपूर्वक जो ऊपर की ओर ले जाता है, उसे योगियों ने मूलबन्ध कहा है।

मूल का एक और अर्थ है – नीचे या तल की ओर रहने वाला आधार भुत या आखिरी प्रदेश। बंध का अर्थ है – बाँधाना यानि नीचे की ओर रहने वाले प्रदेश को बाँधे रहना ही Moola bandha है.

मूलबन्ध की परिभाषा – Defenation of Mula bandha in Hinhi

विद्वानों ने मूलबन्ध को कुछ इस तरह परिभाषित किया है –

1- स्वामी सत्यानंद सरस्वती सरस्वती के अनुसार – यह अभ्यास मानसिक अवस्था में परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को योग के अंतिम उद्देश्य अर्थात असीम सत्ता की ओर ले जाता है.

2- स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती के अनुसार – यह सभी भूतों का मूल है अर्थात समस्त जगत का अधिष्ठान ब्रम्ह्म है जिसमें चित्त को बाँध दिया जाता है.

3- स्वामी कुवल्यानंद के अनुसार – Moola bandha मुख्यतः गुदा संवरणी पेशियों का प्रवल संकोच करने का अभ्यास है।

Mula bandha कैसे करते है? – How to do Mula Bandha in hindi?

इसको करने की विधि इस प्रकार है –

मूलबन्ध विधि 1 – Moola Bandha (Perineum contraction)

Stage1:

  • इसको करने के लिए सिद्धासन या सिद्धयोनि आसान में बैठ जाये ताकि लिंग मूल योनि क्षेत्र पर दबाव पड़े.
  • अब आखों को बंद कर लें और पुरे शरीर को शिथिल करें।
  • कुछ क्षणों के लिए स्वाभाविक श्वास के प्रति सजग बन जाये.
  • उसके बाद पुरुष लिंग-मूल और महिलाये योनि क्षेत्र पर सजगता को केंद्रित करें.
  • मूलाधार प्रदेश की पेशियों को ऊपर की ओर खींचते हुए इस क्षेत्र को संकुचित करें।
  • उसके बाद पेशियों को शिथिल करे.
  • अब पुरुष लिंग-मूल और महिलाये योनि प्रदेश को जितने लयपूर्वक दंग से हो सके थोड़ी-थोड़ी देर के लिए समान रूप से संकुचित एवं शिथिल करते रहें।
  • यह पहला चरण हुआ.

Stage 2

  • दूसरे चरण में धीरे धीरे पुरुष लिंग-मूल और महिलाये योनि क्षेत्र को संकुचित करे और संकुचन को बनाये रखे.
  • सामान्य श्वसन करते रहे श्वास को न रोके.
  • अब संकुचन को थोड़ा और बढ़ायें किन्तु शरीर के बाकि हिस्से को विश्राम की स्थिति में रखें.
  • केवल मूलाधार प्रदेश लिंग-मूल और योनि क्षेत्र की पेशियों को संकुचित करे.
  • इसमें प्रारम्भ में गुदा एवं मूत्र अवरोधिनियाँ भी सिकुड़ जाती है. किन्तु जैसे जैसे सजगता और नियंत्रण बढ़ता जायेगा इसमें कमी आएगी और धीरे धीरे यह समाप्त हो जायेगा. अंत में आपको को एड़ी के सामने एक ही बिंदु की गति का अनुभव होगा.
  • अब पेशियों को धीरे धीरे समान रूप से शिथिल करें।
  • संकुचन बिंदु पर एकाग्रता लाने के लिए मेरुदण्ड के तनाव को व्यवस्थित करें.
  • प्रारम्भ में Moola bandha अधिकतम संकुचन और पूर्ण शिथिलीकरण के साथ 10 बार तक अभ्यास कर सकते है.

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मूलबन्ध विधि 2: अन्तर्कुम्भक और जालन्धर बंध के साथ – Moola Bandha with internal breath retention and jalandhara bandha

  • सिद्धासन या सिद्धयोनि आसन या मूलबन्धासन में इस प्रकार बैठें कि घुटने जमीन का स्पर्श करते हुए रहे.
  • इन आसनों में एड़ी का दबाव मूलाधार प्रदेश पर पड़ता है. जिससे बन्ध के उत्तम अभ्यास में सहायता मिलती है.
  • अब हथेलियों को घुटनों पर रखे.
  • आंखें बन्द कर लें और कुछ क्षणों तक पुरे शरीर को शिथिल करें।
  • अब गहरी श्वास लें. फिर श्वास को अन्दर रोककर जालन्धर बन्ध करें.
  • जालन्धर बन्ध लगाये रखते हुए, मूलाधार/योनि प्रदेश को धीरे धीरे संकुचित करते हुए मूल बन्ध लगायें
  • संकुचन को जितना कसकर रोक सके रोकें अधिक जोर न लगायें।
  • यह अंतिम स्थिति है. अंतिम स्थिति में तब तक रहें जब तक सुबिधापूर्वक श्वास रोक सके.
  • अब धीरे धीरे पहले मूल बन्ध को ढीला करें, सिर को सीधा करें (जालन्धर बन्ध) और श्वास छोड़े।
  • इस तरह 10 बार इसका अभ्यास करें।

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मूलबन्ध के दौरान श्वसन? – Breathing during Mula Bandha in Hindi?

Moola bandha का अभ्यास अन्तर्कुम्भक और बहिर्कुम्भक दोनों के साथ भी क्या जा सकता है. 

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मूलबन्ध में कितने समय तक रहना चाहिए? – Moola Bandha Duration in Hindi?

जितनी देर आरामपूर्वक आप श्वास को रोक सके, उतनी देर मूलबन्ध का अभ्यास करना चाहिए. अन्तर्कुम्भक और बहिर्कुम्भक के समय गिनती करते हुए धीरे-धीरे एक एक गिनती बढ़ाकर कुम्भक की अवधि को बढ़ाना चाहिए. प्रारम्भ में Moola bandha अभ्यास की 10 बार किया जा सकता है.

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मूलबन्ध के दौरान सजगता – Awareness during Mula Bandha in Hindi

आपकी सजगता शरीरिक रूप से अंतिम स्थिति में आते समय और जालन्धर बन्ध लगाते समय श्वास पर केंद्रित रखना चाहिए.

जब Moola bandha लग जाये (अंतिम स्थिति) में सजगता को मूलाधार के संकुचन पर केंद्रित करना चाहिए.

आध्यात्मिक रूप से आपकी सजगता श्वास पर और उसके बाद संकुचन के समय मूलाधार चक्र पर होनी चाहिए।

मूलबंद का अभ्यास कब (क्रम ) करना चाहिए – Moola Bandha Sequence in Hindi

इसका अभ्यास आसन (Asana) और प्राणायाम (Pranayama) के बाद और ध्यान (Meditation) से पहले किया जाना चाहिए। मूल बंध आदर्श रूप से मुद्रा (Mudra) के संयोजन के साथ किया जाता है. इससे इसका प्रभाव काफी बढ़ जाता है.

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मूलबंद में सावधानियाँ – Contra-indications of Moola Bandha in Hindi?

  • इसका अभ्यास किसी अनुभवी योग शिक्षक के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए।
  • खूनी बवासीर एवं अत्यधिक कब्ज से पीड़ित व्यक्ति को इसे नहीं करना चाहिए।
  • भगंदर से पीड़ित व्यक्ति को भी इसे नहीं करना चाहिए।
  • मूलबन्ध ऊर्जाओं का जागरण बड़ी तीब्रता से करता है और यदि सही ढंग से अभ्यास न किया जाए। तो अत्यधिक क्रियाशीलता के लक्षण उत्पन्न हो सकते है.

मूलबन्ध के लाभ – Benefits of Mula Bandha in Hindi

  • मूल बन्ध करने से अनेक शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते है.
  • यह अभ्यास प्रजनन एवं मल मूत्र उत्सर्जन तंत्र को स्वस्थ बनाता है.
  • यह श्रेणी के स्नायुओं को शक्ति प्रदान करता है.
  • आँत क्रमाकुंचन भी उद्दीप्त होता है. जिससे कब्ज और बवासीर (Hemorrhoids) का निवारण होता है.
  • दमा, ब्रोकाइटिस तथा गठिया के रोगियों के लिए बहुत उपयोगी है.
  • यह गुदा विदर, अल्सर प्रस्टेटाइटिस प्रॉस्टेट की अतिवृद्धि और दीर्घकालिन श्रोणीय संक्रमण में भी लाभदायक है.
  • इस अभ्यास से ऊर्जा मुक्त होती है. इसलिए यह मनोकायिक और शरीर का हास्य करने वाले कुछ रोगों की चिकित्सा में भी लाभदायक है.
  • इसके प्रभाव मस्तिस्क एवं अन्तः स्रावी ग्रंथियों के माध्यम से सम्पूर्ण शरीर में फैलते है.
  • इससे मानसिक अवसाद भी दूर होता है.
  • इस अभ्यास में दक्षता प्राप्त होने से आध्यत्मिक जागरण के लिए शारीरिक मानसिक और अतीन्द्रिय शरीर सहजता से तैयार हो जाते है.
  • मूल बन्ध ब्रह्मचर्य पपालन में सहायक होता है.
  • यह अनेक यौन रोगों से मुक्ति दिलाता है।
  • मूल बन्ध आध्यत्मिक उत्थान के लिए यौन ऊर्जा के ऊर्ध्वगमन और साथ ही वैवाहिक जीवन को अधिक समृद्ध बनाने के लिए इस ऊर्जा को नीचे की ओर प्रवाहित करने की क्षमता प्रदान करता है.
  • यह यौन विषयक निराशा यौन ऊर्जा के दमन और यौन संबन्धी अपराध बोध से मुक्त करने में सहायक होता है.
  • मूलबन्ध से मूलाधार चक्र प्रभावित होता है.
  • मेरुदंड के निचले हिस्से से निकलने वाली तथा वहाँ समाप्त होने वाली सभी नाड़िया प्रभावित होती है. जिससे पुरे शरीर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
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