दोस्तों आज का लेख खेचरी मुद्रा (Khechari mudra) के बारे में है। इस लेख में आप जान पायेंगे कि खेचरी मुद्रा क्रिया योग की विधि, सावधानियाँ एवं लाभ क्या है? साथ ही आप यह भी जान पाएंगे की हटयोग में खेचरी मुद्रा क्रिया योग का क्या महत्व है। तो चलिए शुरू करते है –
खेचरी मुद्रा – Khechari mudra in hindi
खेचरी शब्द संस्कृत की दो धातुओं ‘खे’ और ‘चर’ से मिलकर बना है। संस्कृत में खे का अर्थ आकाश और चर का अर्थ चलने वाला होता है। योग में Khechari-mudra का सम्बन्ध अमृत से है। जो बिंदु से स्रावित होता है और उसके बाद विशुद्धि चक्र में उसका पान किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि खेचरी मुद्रा में दक्षता प्राप्त हो जाने पर योगी लोग विशुद्धि चक्र में टपकने वाली अमृत की बूँदो का पान कर अपनी भूख और प्यास मिटा सकते है। सम्पूर्ण शरीर को नव यौवन प्रदान कर सकते है।
खेचरी-मुद्रा करने की विधि – Khechari Mudra Steps in Hindi
इस मुद्रा का अभ्यास बहुत ही सरल व् आसान है। खेचरी मुद्रा को कहीं भी और कभी भी किया जा सकता है। लेकिन जब वातावरण में प्राण वायु अधिक हो तब इसे करने से ज्यादा लाभ मिलता है। तो चलिए जानते है Khechari-Mudra करने की सही विधि क्या है –
- सबसे पहले ध्यान के किसी आसन जैसे- सुखासन, पद्मासन या वज्रासन में आराम से बैठ जाये। खेचरी मुद्रा के लिए पद्मासन, सिद्धासन या सिद्धयोनि आसान सबसे उत्तम होता है।
- अपने सिर और मेरुदण्ड को सीधा रखें।
- दोनों हाथों को घुटनों पर रखें।
- अब ज्ञान मुद्रा या चिन मुद्रा को लगा ले।
- आँखों को बन्द कर गहरी श्वसन करे और पुरे शरीर को शिथिल करें।
- अपने जिह्वा को ऊपर पीछे की ओर मोड़ें। आपका जिह्वा का निचे का हिस्सा तालु के ऊपरी भाग को स्पर्श करना चाहिए।
- जिह्वा के अग्र भाग को जितना सम्भव हो सके उसे आरामपूर्वक पीछे ले जायें।
- पूरी क्रिया के दौरान कोई जोर जबरजस्ती ना करें।
- अब उज्जायी प्राणायाम करें और धीरे धीरे गहरी श्वास ले।
- श्वास को जितनी देर तक रोक सकते है रोक कर रखें।
- जब आपका जिह्वा तक जाए, तो उसे आराम दें और फिर अभ्यास को दुहरायें।
- इस तरह Khechari-mudra का अभ्यास किया जाता है।
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Khechari mudra कितनी देर तक करनी चाहिए?
खेचरी मुद्रा को कहीं भी और कभी भी किया जा सकता है। लेकिन जब वातावरण में प्राण वायु अधिक हो तब इसे करने से जयादा लाभ मिलता है।
शुरू में खेचरी मुद्रा का अभ्यास 5-10 मिनट तक करें। जैसे जैसे अभ्यास में निपूर्णता होती जाए, इसे अन्य योगाभ्यासों के साथ भी किया जा सकता है
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Khechari mudra में सजगता
खेचरी मुद्रा को करते समय आपकी सजगता शरीरिक रूप से कण्ठ पर होनी चाहिए।
आध्यात्मिक रूप से विशुद्धि चक्र पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। साथ में आपको इस बात का भी ध्यान रखना है कि अभ्यास के अनुसार सजगता के बिंदु में भी परिवर्तन करते रहना है।
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खेचरी मुद्रा के दौरान श्वसन? – Breathing during Khechari mudra in Hindi?
Khechari mudra के दौरान श्वसन की दर बहुत धीरे होनी चाहिए। मतलब की आपको बहुत धीमे धीमे श्वसन करना है।
अपने श्वसन को 5 या 6 श्वास प्रति मिनट तक लाने का प्रयास करें।
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खेचरी मुद्रा में सावधानियाँ – Precaution
Khechari mudra को करते समय यदि मुँह में कड़वा स्वाद आये, तो तुरंत खेचरी मुद्रा के अभ्यास को रोक देना चाहिए।
इस प्रकार का स्राव शरीर में विषाक्त तत्वों की उपस्थिति का सूचक होते है।
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खेचरी मुद्रा की सीमायें – Contra-indications
यदि आपके मुँह में कोई सामान्य रोग, घाव या जिह्वा व्रण (Tongue ulcers) है। तो Khechari mudra का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
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खेचरी मुद्रा के लाभ – Benefits of Khechari mudra in Hindi
- खेचरी-मुद्रा मुँह के पीछे और नासिका छिद्रों में स्थित कई दबाव बिंदुओं को उद्दीप्त करता है।
- यह मुद्रा सम्पूर्ण शरीर को प्रभावित करता है।
- खेचरी-मुद्रा से ग्रंथियों की मालिश होती है। जिससे लार व रसों (हार्मोन्स) के स्त्राव में वृद्धि होती है।
- खेचरी-मुद्रा मुद्रा भूख और प्यास को कम करता है।
- इसको करने से आंतरिक शांति एवं स्थिरता आती है।
- खेचरी-मुद्रा शरीर की प्राणशक्ति की रक्षा करता है।
- प्रसव काल में महिलाओं के लिए भी काफी फायदेमंद मुद्रा है।
- खेचरी-मुद्रा मेरुदण्ड और सामने के अतीन्द्रिय मार्ग के प्रति सजगता विकसित करने के लिए उज्जायी प्राणायाम के साथ किया जाता है।
सारांश
खेचरी मुद्रा में प्राण को सक्रिय बनाकर कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने की क्षमता होती है।
इसका प्रभाव विशुद्धि चक्र पर जयादा होता है।
खेचरी मुद्रा का उच्च अभ्यास कुशल मार्ग दर्शन में ही करना चाहिए।